हम लोग
दिल्ली लिसनिंग ग्रुप एक तेज़ी से बदलते शहरी माहौल में काम करता है, जहाँ शहर के कागज़ी नक्शे और मनसूबे उसकी रोज़मर्रा ज़िंदगी से पल-पल दूर छूटते जा रहे हैं। शहर को नये ढंग से सुनने और सुनने के अलग-अलग तरह के तरीकों के बीच हम संवाद और लेन-देन के जरिये अपने इस काम को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी नज़र में, शहर को समझने के लिए नक्शों और योजनाओं की पनाह में जाने की बजाय सुनना एक ऐसा साधन है जो शहर की रोज़मर्रा की जिंदगी का ज्ञान रचने और आवाज़ व शोर की परिभाषाओं को बदलने वाले सिलसिलों का सुराग देता है।
"हम ऐसे हालात और दायरे गढ़ना चाहते हैं, जहाँ लोग ऐसी चीजों को सुने जिन्हें वे सहज ही नज़रअंदाज कर देते हैं, ग़ौर नहीं कर पाते हैं या फिर उनको सुनने से इंकार कर देते हैं।"
-- (साउंडबॉक्स मैगज़ीन में छपे एक साक्षात्कार के सौजन्य से)
दिल्ली लिसनिंग ग्रुप, अंकुर और फोनबॉक्स प्रोडक्शन की एक मिली-जुली कोशिश है। हमारे इस प्रयोग में अंकुर द्वारा बीते सालों के दौरान विकसित की गई शिक्षण पद्धति से निकले सुनने के सामूहिक तौर-तरीकें, दरअसल एक-दूसरे को सुनकर खुद को सींचने का एक तरीका है। एक दूसरे को सुनना स्वयं शिक्षा का असीम साधन होता है।
हमारे कुछ साथी हैं: प्रभात, सोफ्या, किरन, सैफुद्दीन, लख्मी, जानू, ज्योति, लव आनंद, विक्की, त्रिपन, कुलविंदर कौर, मनोज, राकेश, सुनीता