सुनने को लिखना
सुनने और आवाज के ‘बारे में’ महज लिखने की बजाय ये सवाल लगातार हमारी दिलचस्पी का सबब रहा है कि सुनने का रियाज करते हुए कैसे लिखा जाता है। हमारी समझ में सुनने की शारीरिक क्रिया और अपना ध्यान व्यवस्थित करना आवाजों को विन्यस्त करने के सिलसिले का पहला मुकाम होता है। लिहाजा, हम शहर के अलग-अलग भागों में एक खास वक्फे और खास संदर्भ में लिखने का प्रयोग और अभ्यास करते हैं।
हर कोई अलग ढंग से सुनता है। सुनने को लिखना आवाजों को रिकाॅर्ड करने का एक ऐसा तरीका है जिसमें हमें अलग-अलग सुनने वालों के खास अनुभवों को उभारने का मौका मिलता है जो कि हमेशा एक चुनिंदा ढंग से और स्थान विशेष के हिसाब से चलने वाली अर्थ ग्रहण प्रक्रिया होती है।
लिखने के जरिए हमने जिन व्यवहारों को समझने-बूझने की कोशिश की है उनमें ये शामिल हैंः
कैसे ध्वनियां हमारे रोज़मर्रा वक़्त को एक सांचे में ढालती हैं
अलग-अलग तरह की मज़दूरी से जुड़ी खास आवाज़ों के सुनने और निकालने के हुनर।
घरेलू दायरों के भीतर और आसपास की आवाज़ों के रिश्ते
साथ-साथ सुनने के अनुभवों की अभिव्यक्ति
सार्वजनिक यातायात और बाज़ार की आवाज़ें
सुनने के व्यवहारिक प्रयोगों के लिखित ब्यौरे - रोज़मर्रा की सुनने की तस्वीरें/ ग्राफ/ सुनने के ढांचें/ ठिकाने/नेटवर्क/पढ़ने और सीखने की आवाज़ें