सुनने का संदर्भ

अंकुर के ज़रिये दिल्ली लिसनिंग ग्रुप के कई साथी लर्निंग कलेक्टिव्ज़, क्लबों और स्कूल समूहों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं ताकि समूह और स्व-शिक्षा के संदर्भ रचने के लिए अंकुर के सुनने पर आधारित रियाज़ को आगे बढ़ा सकें। स्कूली सीख-सिखाव को रोजमर्रा के अनुभवों से जोड़ने के लिए हम व्यक्तिगत और संवादिक सुनायी व्यवहारों को आगे बढ़ाने के एक व्यापक कार्यक्रम के अनुसार काम कर रहे हैं। हमारे कुछ सवाल ये हैं कक्षा के अनुभव में आवाजों के क्या आयाम होते हैं? पढ़ाने में मौखिक आवाजों की क्या भूमिका होती है? वो क्या चीज़ है जो एक खाली कमरे को एक-दूसरे को सुनने के लिए इकट्ठा होने के ठिकाने में तब्दील कर देती है? सुनने का हुनर किस तरह आजीवन खुद सीखने के प्रयासों में योगदान दे सकता है?